मिथक: गुर्दे की सभी बीमारियाँ लाइलाज हैं
तथ्य: ज्यादातर गुर्दे की बीमारियां समय रहते इलाज शुरू करने से ठीक हो जाती हैं। कुछ गुर्दे की बीमारियों को पहले की अवस्था में नहीं लाया जा सकता और यह बढ़ता जाता है (अंतिम चरण गुर्दे का फेल होना कहलाता है), लेकिन इस खतरे को धीमा किया जा सकता है यदि रोग का पता समय रहते लगा लिया जाय और उचित उपचार शुरू कर दिया जाय।
मिथक: मैं बिल्कुल ठीक हूं, इसलिए मुझे नहीं लगता कि मुझे गुर्दे की समस्या है
तथ्य: ज्यादातर मरीज गुर्दे की पुरानी बीमारी (CKD) के शुरुआती चरण में कोई लक्षण नहीं दिखाते हैं। लेकिन प्रयोगशाला के परीक्षणों में असामान्य वैल्यू पाए जाने पर ही इसका पता चल पाता है। इसलिए जिन्हें गुर्दे की बीमारी की आशंका हो उन्हें इसकी वार्षिक जांच करवानी चाहिए। लगभग एक चौथाई मरीज, डॉक्टर से तभी मिलते हैं जब उन्हें डायलिसिस पर रखने की आवश्यकता आ पड़ती है।
मिथक: मैं बहुत पेशाब करता/करती हूं, इसलिए मेरे गुर्दे स्वस्थ हैं।
तथ्य: कुछ गुर्दे की बीमारी में मूत्र का उत्पादन कम होता है (प्रति दिन 400 मिलीलीटर मूत्र से कम)। गुर्दे की बीमारी के अधिकांश मामलों में, मूत्र उत्पादन प्रति दिन 3000 मिलीलीटर से ज्यादा होता है। यहां तक कि सामान्य या बहुत ज्यादा मूत्र उत्पादन होने के बावजूद, एसिड, पोटेशियम, यूरिया, क्रिएटिनिन और बहुत से अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन नहीं हो पाता यानी वे बाहर नहीं निकल पाते हैं। ऐसी स्थिति में तब मरीज को उपचार की आवश्यकता हो सकती है – कुछ मामलों में डायलिसिस की आवश्यकता भी पड़ सकती है।
मिथक: ज्यादा पानी पीने से मेरे गुर्दे स्वस्थ रहेंगे। गुर्दे की बीमारियों का यह इलाज है।
तथ्य: स्वस्थ लोगों में प्यास की वजह से पानी का सेवन अच्छी तरह से किया जाता है। रोजाना 2-3 लीटर तरल पदार्थ पीने से गुर्दे में पथरी के बनने को रोका जा सकता है, साथ ही मूत्र पथ के संक्रमण से भी बचा जा सकता है। लेकिन जब गुर्दा फेल हो रहा हो या फेल होने की स्थिति में हो तो तरल पदार्थ का पीना जारी रखने से फेफड़ों में तरल पदार्थ भर सकता है (जिसे पल्मोनरी एडिमा यानी कि फुफ्फुसीय शोथ कहते हैं) या उच्च रक्तचाप का नियंत्रण ख़राब हो सकता है। इसके परिणाम घातक हो सकते हैं। अपने डॉक्टरों की सलाह का पालन करें।
मिथक: मैं ठीक महसूस करता/करती हूं, इसलिए मुझे इलाज जारी रखने की आवश्यकता नहीं है
तथ्य: गुर्दे की पुरानी बीमारी (CKD) के कई मरीज उचित चिकित्सा मिलने पर बहुत अच्छा महसूस करते हैं, और इसलिए वे दवाओं या उपचार को बंद सकते हैं। सीकेडी उपचार का बीच में रोकना खतरनाक हो सकता है। क्योंकि इससे गुर्दों की कार्यक्षमता तेजी से बिगड़ सकती है, जिससे डायलिसिस या गुर्दे के प्रत्यारोपण की आवश्यकता समय से पहले ही पड़ सकती है।
मिथक: एक बार डायलिसिस शुरू होने पर जीवन भर इसकी आवश्यकता होती है
तथ्य: गुर्दे की तीव्र विफलता आमतौर पर ठीक की जा सकती है (उचित उपचार के साथ) और डायलिसिस की आवश्यकता तभी तक होती है जब तक गुर्दे पहले की अवस्था में नहीं आ जाते। जीवन भर डायलिसिस न लेना पड़े इसके डर से डायलिसिस लेने में देरी करना जानलेवा हो सकता है। हाँ, अगर मरीज प्रत्यारोपण का विकल्प नहीं चुनता है तो उसे गुर्दे के फेल होने के अंतिम चरण में आजीवन डायलिसिस की आवश्यकता होती है।
मिथक: डायलिसिस के पहले गुर्दे का प्रत्यारोपण नहीं हो सकता
प्री-इप्टिव ट्रांसप्लांटेशन यानी अग्रकय प्रत्यारोपण का अर्थ है डायलिसिस थेरेपी शुरू करने से पहले रोगी के गुर्दे का प्रत्यारोपण करना। जिन रोगियों को प्री-इप्टिव ट्रांसप्लांटेशन मिलता है, उनके गुर्दे तब मिलते हैं जब उनका स्वास्थ्य आम तौर पर अच्छा होता है, जो उनके नए गुर्दे के कार्य को बेहतर बना सकता है और समूचे स्वास्थ्य को अच्छा और जीवन की उम्र लंबी कर सकता है।
ब्रिगेडियर (डॉ.) अनुज राजवंशी (सेवानिवृत्त) | सीनियर कंसल्टेंट – नेफ्रोलॉजी | नारायणा मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल, जयपुर
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