खाना पकाने का तेल भारतीय व्यंजनों का एक अभिन्न हिस्सा है। आज के समय में सोशल मीडिया और टेलीमार्केटिंग पर दुनिया भर में कई तरह के खाद्य तेलों को दिखाया जाता है जिसमें हर तरह के स्वास्थ्य संबंधी दावे किए जाते हैं। खाद्य तेल का सही चयन आवश्यक है, विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में जहां खाना पकाने के तरीके पश्चिम से अलग हैं।
सबसे पहले आइए इन तेलों के पीछे के विज्ञान को समझें।
खाद्य तेलों में कई वसायुक्त अम्ल होते हैं जो मानव चयापचय(मेटाबोलिज्म) में अपना कार्य करते हैं। इन वसा वाले अम्ल को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है:
संतृप्त वसा अम्ल (उपसमूह-ए) छोटी श्रृंखला बी) मध्यम-श्रृंखला सी) दीर्घ-श्रृंखला एसएफए)
मोनोअनसैचुरेटेड (एमयुएफए)
पॉली अनसैचुरेटेड (पीयुएफए) (इसे लिनोलेनिक और अल्फा-लिनोलेनिक एसिड और ट्रांस वसा वाले अम्ल में विभाजित किया जाता है)
इसके अलावा खाद्य तेलों में कई एंटीऑक्सिडेंट होते हैं जैसे टोकोफेरोल्स, ओरीज़ानोल, कैरोटेनॉइड्स, टोकोट्रिनोल, फाइटोस्टेरोल और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स।
पॉलीअनसेचुरेटेड वसा वाले अम्ल और मोनोअनसैचुरेटेड वसा दोनों को अगर संतुलन में खाया जाता है और संतृप्त या ट्रांस वसा के प्रतिस्थापन के रूप में उपयोग किया जाता है तो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने और हृदय रोगों के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है।
स्मोक पॉइंट क्या है और यह कैसे काम करता है?
हर तेल में स्मोक पॉइंट की सीमा होती है। यदि इससे ज्यादा गर्म किया जाता है, तो तेल टूटना शुरू कर देता है और हानिकारक रसायनों को छोड़ता है जो न केवल भोजन के स्वाद को प्रभावित करता है बल्कि खाने के लिए भी हानिकारक होता है। भारत में खाना पकाने के तेल को गहरे तलने के लिए तापमान बहुत अधिक जैसे 170 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तक जा सकता है। यह दिखाया गया है कि कुछ तेल खास कर के रिफाइंड तेल जिसमें उच्च मात्रा में पीयूएफए होता है वो जहरीले कणों जैसे फ्री रेडिकल्स, ट्रांस वसा जैसे मेलोनडीएलड्रेहाईड आदि में टूट जाते हैं जो संभावित रूप से कोशिका के डीएनए को बदलने वाले और धमनियों में वसा जमा होने को बढ़ावा देने वाले होते हैं।
इसके अतिरिक्त भारत में हमें तेल को बार-बार तलने में उपयोग करने की आदत है। यह घटकों को और नुकसान पहुंचा सकता है और अधिक विषाक्त यौगिकों का उत्पादन कर सकता है जो हृदय के लिए अत्यधिक हानिकारक हैं। एक ही तेल का बार-बार उपयोग करना (तलने के लिए उदाहरण) का विश्लेषण किया गया है और उच्च टीएफए (ट्राइफ्लूरो एसिटिक एसिड) को दिखाया गया है।
इसलिए भारतीय खाना पकाने के लिए नारियल तेल (विशेषतः शुद्ध नारियल तेल), सरसों का तेल, मूंगफली का तेल या शुद्ध देसी घी का उपयोग कर सकते हैं। जैतून का तेल जो स्वास्थ्यप्रद तेलों में से एक है, सलाद और हल्का भुनने के लिए अच्छा है और बहुत ज्यादा तलने के लिए अनुशंसित नहीं है जो भारतीय शैली के खाना पकाने का एक अभिन्न अंग है।
क्या आपको पता था? तेलों को मिलाना बेहतर है
इन तेलों का उपयोग करने के अलावा आदर्श संतुलित आहार में वसा में पीयूएफए/एसएफए 0.81 से 1.0 के बीच और लिनोलेनिक और अल्फा लिनोलेनिक अम्ल 5-10 होती है। खाना पकाने के तेल के एक प्रकार का उपयोग करके इन्हें प्राप्त नहीं किया जा सकता है कि प्रत्येक तेल में दूसरे किसी आवश्यक वसा वाले अम्ल की कमी हो जाती है। इसलिए सीरियल-आधारित आहार में वसा वाले अम्ल के उचित संतुलन को सुनिश्चित करने के लिए अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल का सेवन बढ़ाना आवश्यक है और खाना पकाने के तेल में लिनोलिक एसिड की मात्रा को कम करना चाहिए।
तेलों को मिलाने से 2 या अधिक अलग तेलों की दक्षता बढ़ सकती है जिससे वसायुक्त अम्ल और एंटीऑक्सिडेंट का बेहतरीन संतुलन मिलेगा। इस तरीके का उपयोग तेलों के ऑक्सीडेटिव और थर्मल स्थिरता को बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। 70:30 के मिश्रण में चावल की भूसी का तेल और कुसुम तेल जिसमे एंटीऑक्सिडेंट मिलाए जाते हैं से कथित तौर पर कई चर्बी वाले मापदंडों और कुछ सूजन वाले कारकों में सुधार किया है। इसी तरह कैनोला (एकल) या अलसी के तेल के मिलाने से सीरम कोलेस्ट्रॉल और एलडीएल को कम करने की बात सामने आई है। इसलिए कैनोला का आम तौर पर खाए जाने वाले वसा के तौर पर प्रतिस्थापन – अलसी का तेल या विभिन्न प्रकार के तेलों का सम्मिश्रण एक व्यावहारिक विकल्प है जिससे अनुशंषित आदर्श आहार प्राप्त किया जा सकता है।
खाना पकाने के तेलों के सम्मिश्रण का एक सरल और व्यावहारिक संशोधन भारतीय खाना पकाने की विधि/स्वाद को प्रभावित किए बिना एक अच्छा स्वास्थ्य परिणाम दे सकता है।
तो अगली बार, अपने खाना पकाने के लिए सही तेल चुनें और अपने भोजन का आनंद लें!
डॉ आशाश्री उपाध्याय | वरिष्ठ आहार विशेषज्ञ, नैदानिक पोषण | सह्याद्री नारायणा मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल शिमोगा