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Home > Blog > Urology > महिलाओं में गुर्दा संबंधी विकार: कारण और रोकथाम
Urology

महिलाओं में गुर्दा संबंधी विकार: कारण और रोकथाम

by Narayana Health July 1, 2021
written by Narayana Health July 1, 2021
महिलाओं में गुर्दा संबंधी विकार: कारण और रोकथाम

गुर्दे का विकार गुर्दे का काम करना बंद कर देना और समयपूर्व मृत्यु दर के गंभीर परिणामों के कारण एक विश्वव्यापी स्वास्थ्य चिंता है। वर्तमान में यह महिलाओं में मृत्यु दर का 8वां प्रमुख कारण है। यह कई लोगों के लिए एक दहशत के रूप में आता है। लेकिन गुर्दे जो मुट्ठी के आकार के होते हैं, किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

गुर्दे की पुरानी बीमारी का प्रसार (सीकेडी) पुरुषों की तरह महिलाओं में भी आम है और महिलाओं में सीकेडी विकसित होने की संभावना पुरुषों से 5% अधिक होती है।

सीकेडी को गर्भावस्था में प्रतिकूल परिणाम और प्रजनन क्षमता में कमी के लिए एक जोखिम कारक भी माना जाता है। जो महिलाएं सीकेडी प्रभावित होती है उनमें मां और बच्चों में नकारात्मक परिणामों का खतरा बढ़ जाता है। सीकेडी के गंभीर अवस्था वाले महिलाओं में गर्भावस्था अत्यंत चुनौतीपूर्ण होती है उनमें अतिरक्तदाब और अपूर्णकालिक शिशु के जन्म लेने जैसे विकारों की दर उच्च स्तर पर पाई जाती है।

गुर्दे की विकारों का क्या कारण है?

गुर्दे की बीमारीयाँ ज्यादातर मधुमेह, उच्च रक्तचाप और धमनियों के सख्त होने के कारण होती है। हालाँकि इनमें से कुछ रोग गुर्दे की सूजन के कारण भी हो सकते हैं। इस स्थिति को नेफ्राइटिस कहा जाता है।

शारीरिक विकारों के अतिरिक्त चयापचय संबंधी विकार भी गुर्दे की बीमारियों को जन्म दे सकते हैं। हालांकि चयापचय से गुर्दे की गड़बड़ी के मामले दुर्लभ हैं, क्योंकि इसके लिए बच्चों में माता-पिता दोनों से विरासत में मिले तो ही यह संभव है। अन्य कारणों में उस प्रणाली में रुकावट शामिल है जो गुर्दे से उन दवाओं को बाहर निकाल फेंकने का काम करता है जो गुर्दे के ऊतकों के लिए जहरीली साबित होती है।

चूंकि कारण भिन्न होते हैं इसलिए लक्षण भी भिन्न हो सकते हैं। कुछ बहुत ही सामान्य लक्षणों में बहुत अधिक या बहुत कम मूत्र का निकलना, मूत्र से रक्त निकलना या मूत्र में रसायनों का असामान्य स्तर का होना है। लेकिन अगर बीमारी एक जीवाणु संक्रमण के कारण होती है, तो पहला संकेत उच्च तापमान का बुखार आना है। मध्यम या हल्के गुर्दे की बीमारियों के मामले में कभी-कभी कोई लक्षण ही सामने नहीं आता है।

लेकिन यह कहना कि इनसे किसी प्रकार का दर्द नहीं होता, यह कहना गलत होगा। मूत्रवाहिनी में गुर्दे की पथरी से ऐंठन वाला दर्द हों सकता है जो निचले हिस्से से पेट और जांघ के बीच के भाग में फैल जाती है। इस बीमारी से पुराना या अचानक से गुर्दे के काम ना करने की बीमारी हो सकती है। जबकि पहले बताए कारणों से गुर्दे के काम ना करने की रफ़्तार धीरे-धीरे होती है लेकिन दूसरे बताए कारण के कारण कुछ घंटों या दिनों के भीतर ही गुर्दे काम करना बंद कर सकते हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दोनों ही जीवन के लिए खतरा हैं।

बच्चों में बढ़ती गुर्दे की समस्या

भारतीय बच्चों में गुर्दे के काम ना करने की घटना भारत में चिंताजनक दर से बढ़ रही है। 20% भारतीय बच्चे गुर्दे की बीमारियों से पीड़ित हैं। माता-पिता की अपने बच्चे को स्वस्थ रखने और रोग मुक्त जीवन जीने में अग्रणी भूमिका है।

  • आहार: संतुलित आहार में वसा, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का मिश्रण होता है। चीनी और नमक के स्तर को बनाए रखने के लिए प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और गैस मिश्रित पेय से बचें। माता-पिता को यह सुनिश्चित करने के लिए अपने बच्चों को फिट, सक्रिय और अच्छा भोजन देना चाहिए ताकि वे अधिक वजन वाले न बनें। माता-पिता को बच्चों को खेल और शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि वे तंदरुस्त रहें।
  • पानी का सेवन करें: बच्चों को स्वस्थ तरल पदार्थों विशेषकर पानी पीना आवश्यक है। लेकिन अगर कोई बच्चा निर्जलित है तो उसे अधिक बार पेशाब नहीं करना चाहिए क्योंकि पानी शरीर द्वारा अवशोषित हो जाता है।
  • धूम्रपान नहीं करना: किशोरावस्था वह उम्र है जो सिगरेट पीने के लिए सबसे अधिक आकर्षक होता है और इसलिए माता-पिता को अपने बच्चों पर नजर रखनी चाहिए।
  • दवाएं और औषधि: एस्पिरिन और अन्य प्रतिबंधित दवा के उपयोग सीधे गुर्दे या यकृत को प्रभावित कर सकते हैं। यह शरीर को निर्जलित करता है और गुर्दे के काम ना करने का कारण बनता है।
  • सोडियम का सेवन कम करें: बहुत अधिक सोडियम से उच्च रक्तचाप हो सकता है, इसलिए नमक का सेवन कम करना बेहतर होता है। प्रतिदिन 1.5 से 2.3 ग्राम नमक की मात्रा निर्धारित है।
  • पोटेशियम बढ़ाएँ: पोटेशियम जल स्तर को संतुलित करने में मदद करता है और सोडियम के प्रभाव को कम करता है जिससे रक्तचाप कम होता है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि बच्चों को पोटेशियम युक्त भोजन (आलू, पालक, बीन्स, कम वसा वाले डेयरी उत्पादों) दिया जाए।

निदान कैसे करें?

हालाँकि वास्तविक समस्या बीमारी के निदान में निहित है क्योंकि जब तक कि कोई ट्यूमर ना हों या गुर्दा सूज नहीं जाता चिकित्सकों के लिए केवल गुर्दे को महसूस करके जांचना मुश्किल हो जाता है। हालांकि, ऐसे परीक्षण होते हैं जो गुर्दे के ऊतकों की जांच करते हैं, मूत्र के नमूने लेते हैं और प्रोटीन, चीनी, रक्त, कीटोन्स आदि की जांच करते हैं।

उपचार के क्या विकल्प हैं?

जब चिकित्सक गुर्दे का इलाज करते हैं तो बीमारी के अंतर्निहित कारण पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। यदि संक्रमण बैक्टीरिया के कारण होता है तो एंटीबायोटिक्स द्वारा भी संक्रमण को ठीक किया जा सकता है।

अचानक गुर्दे के काम बंद करने के मामले में यह योजना सबसे अच्छा काम करती है। ऐसे मामलों में मूल कारण का इलाज गुर्दे को उसके सामान्य कामकाज में वापस लाने में मदद कर सकता है। लेकिन गुर्दे के काम ना करने के अधिकांश मामलों में बीमारी के किसी भी तरह के आगे उपचार लिए रक्तचाप को पहले सामान्य स्तर पर लाया जाना चाहिए।

अंतिम अवस्था के गुर्दे के काम बंद करने को केवल डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। हालत के आधार पर सप्ताह में एक बार या उससे अधिक बार डायलिसिस किया जा सकता है। प्रत्यारोपण के मामले में रोगग्रस्त गुर्दे को नए या स्वस्थ लोगों द्वारा लिए गए गुर्दे से प्रतिस्थापित किया जाता है। 80% तक मामलों में यह प्रत्यारोपण काम करता है। इस मामले में एकमात्र डर यह है क्या होगा अगर शरीर प्रत्यारोपण को अस्वीकार कर देगा। हालाँकि जोखिम उठाने लायक है क्योंकि एक स्वस्थ गुर्दा एक व्यक्ति को जीने और बेहतर जीवन जीने में मदद कर सकता है।

डॉ सुदीप सिंह सचदेव, गुर्दा रोग विशेषज्ञ, नारायणा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, गुरुग्राम

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