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Home > Blog > Nephrology > गुर्दे की बीमारी के शुरुआती चेतावनी के लक्षण
Nephrology

गुर्दे की बीमारी के शुरुआती चेतावनी के लक्षण

by Narayana Health May 19, 2021
written by Narayana Health May 19, 2021
Early Warning Signs of Kidney Disease | Narayana Health

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हर व्यक्ति के शरीर में दो गुर्दे होते हैं, जो मुख्य रूप से यूरिया, क्रिएटिनिन, एसिड, आदि जैसे नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट पदार्थों को रक्त में से छानने के लिए जिम्मेदार होते हैं। (जो सभी शरीर में चयापचय के उत्पाद हैं) और इस तरह मूत्र का उत्पादन करते हैं।

लाखों लोग विभिन्न प्रकार के गुर्दे की बीमारियों के साथ रह रहे हैं और उनमें से अधिकांश को इसके बारे भनक तक नहीं है। यही कारण है कि गुर्दे की बीमारी को अक्सर एक ‘साइलेंट किलर’ के रूप में जाना जाता है क्योंकि अधिकांश लोगों को बीमारी का पता तब तक नहीं चलता जब तक यह उग्र रूप धारण नहीं कर लेता। जबकि लोग अपने रक्तचाप, ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर की नियमित रूप से जांच करवाते रहते हैं, वे अपने गुर्दे की किसी भी समस्या का पता लगाने के लिए अपने रक्त में एक सरल क्रिएटिनिन परीक्षण भी नहीं करवाते। 2015 के ग्लोबल बर्डन डिजीज (GBD) के अध्ययन के अनुसार, क्रोनिक किडनी रोग (CKD) को भारत में मृत्यु दर के आठवें प्रमुख कारणों में से एक के रूप में स्थान दिया गया है।

किडनी विकार के चेतावनी के कई संकेत होते हैं, हालांकि, अधिकांश समय इन्हें अनदेखा किया जाता है या किसी और तरह की समस्या समझकर लोग भ्रमित हो जाया करते हैं। इसलिए, हर व्यक्ति को बहुत ही सतर्क रहना चाहिए और किडनी विकार का कोई भी लक्षण दिखने पर जल्द से जल्द पुष्टिकरण परीक्षण (रक्त, मूत्र और इमेजिंग सहित) करवाना चाहिए। ऐसे किसी व्यक्ति को किसी नेफ्रोलॉजिस्ट के पास जाना चाहिए और अपने संदेह को स्पष्ट करना चाहिए। लेकिन अगर आपको उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा, मेटाबॉलिक सिंड्रोम है, या कोरोनरी आर्टरी डिजीज, और / या किडनी फेल होने का पारिवारिक इतिहास है या आप 60 वर्ष से अधिक उम्र के हैं तो आज के युग में आपको नियमित रूप से गुर्दे की जांच करवाते रहना चाहिए।

जबकि गुर्दे की बीमारी के निदान का एकमात्र निश्चित तरीका पुष्टि संबंधी परीक्षण करना है, यहाँ किडनी रोग के कुछ शुरुआती चेतावनी के संकेत दिए गए हैं:

  • शुरुआती संकेतों में से एक है टखनों, पैरों या एड़ी के पास सूजन का दिखना है: ऐसी जगहों पर एडिमा दिखाई देने लगेगी,  जो दबाव देने पर पिट करते हैं, और इन्हें पिटिंग एडिमा कहा जाता है। जैसे-जैसे गुर्दे अपने काम करने में गड़बड़ी करने लगते हैं, शरीर में नमक जमा होने लगता है, जिससे आपकी पिंडली और टखनों में सूजन आने लगती है। संक्षेप में, अगर किसी भी व्यक्ति में इस तरह के लक्षण दिखें तो उसे नेफ्रोलॉजिस्ट से मिलकर अपने गुर्दे की कार्यप्रणाली का तत्काल मूल्यांकन करवाना चाहिए।
  • पेरिऑर्बिटल एडिमा: इसमें आंखों के आसपास सूजन दिखने लगता है जो कोशिकाओं या ऊतकों में तरल पदार्थ के संचय के कारण होता है। यह गुर्दे की बीमारी के शुरुआती लक्षणों में से एक है। यह उन व्यक्तियों में विशेष रूप से होता है जिनमें गुर्दे के माध्यम से काफी मात्रा में प्रोटीन का रिसाव होता है। शरीर से प्रोटीन का नाश इंट्रावस्कुलर ऑन्कोटिक दबाव को कम करता है और आंखों के आसपास के विभिन्न जगहों पर तरल पदार्थ का अतिरिक्त संचय होने लगता है।
  • कमजोरी: गुर्दे की बीमारी का एक सामान्य लक्षण है शुरुआत में थकावट का होना। जैसे-जैसे गुर्दे की खराबी बढती जाती है यह लक्षण और अधिक स्पष्ट होता जाता है। सामान्य दिनों की तुलना में वह व्यक्ति अधिक थका हुआ महसूस कर सकता है और ज्यादा गतिविधियों को करने में असमर्थ होता है, तथा उसे बार-बार आराम की आवश्यकता होती है। ऐसा काफी हद तक रक्त में विषाक्त पदार्थों और अशुद्धियों के संचय के कारण होता है, जिसके परिणामस्वरूप गुर्दे खराब होते जाते हैं। गैर-विशिष्ट लक्षण होने के नाते इसे अक्सर अधिकांश लोगों द्वारा अनदेखा किया जाता है और इसकी पूरी तरह से जांच नहीं की जाती है।
  • भूख में कमी: यूरिया, क्रिएटिनिन, एसिड जैसे विषाक्त पदार्थों के जमा होने से व्यक्ति की भूख कम होने लगती है। इसके अलावा, जैसे-जैसे गुर्दे की बीमारी बढती जाती है, रोगी के स्वाद में बदलाव होता जाता है, जिसे अक्सर रोगियों द्वारा धातु के रूप में बताया जाता है। यदि किसी को दिन में बिना कुछ खाए भी पेट भरे का अहसास होता हो, तो दिमाग में खतरे की घंटी बजनी चाहिए और उसके गुर्दे की जांच करवानी चाहिए।
  • सुबह की मिचली और उल्टी: गुर्दे के खराब होने के शुरुआती लक्षणों में से एक और लक्षण है सुबह-सुबह मिचली और उल्टी का होना, और इसका पता तब चलता है जब रोगी सुबह बाथरूम में अपने दांतों को ब्रश करता है। इससे व्यक्ति की भूख भी कम होती जाती है। गुर्दे फेल होने के अंतिम चरण में, मरीज को बार-बार उल्टी आती है और भूख कम लगती है।
  • एनीमिया: हीमोग्लोबिन का स्तर गिरना शुरू हो जाता है, और व्यक्ति पीला दिखने लग सकता है, बिना शरीर से खून का बाहर हुए। यह गुर्दे की बीमारी की सामान्य जटिलताओं में से एक है। इससे कमजोरी और थकान भी हो सकती है। कई कारणों से यह एनीमिया होता है जिसमें एरिथ्रोपोइटिन का स्तर कम होना(गुर्दे में एरीथ्रोपोइटिन संश्लेषित किया जा रहा है), लोहे का स्तर कम होना, विष संचय के कारण अस्थि मज्जा का दमन होना इत्यादि होता है।
  • पेशाब करने की आवृत्ति में परिवर्तन: किसी को अपने मूत्र उत्पादन पर बहुत सावधानी से ध्यान रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए, रोगी के मूत्र उत्पादन में कमी हो सकती है या उसे अधिक बार पेशाब करने की आवश्यकता महसूस हो सकती है, विशेष रूप से रात में (जिसे रात्रिचर कहा जाता है)। यह एक चेतावनी का संकेत हो सकता है और यह संकेत दे सकता है कि गुर्दे की फ़िल्टरिंग इकाइयाँ क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं या क्षतिग्रस्त होने की प्रक्रिया में हैं। कभी-कभी यह पुरुषों में कुछ मूत्र पथ के संक्रमण या बढ़े हुए प्रोस्टेट का संकेत भी हो सकता है। इस प्रकार, मूत्र उत्पादन में एक परिवर्तन (वृद्धि या कमी) को अपने नेफ्रोलॉजिस्ट को तुरंत सूचित करना चाहिए।
  • मूत्र में झाग या रक्त का होना: पेशाब में अत्यधिक झाग मूत्र में प्रोटीन की उपस्थिति को इंगित करता है (जो सामान्य परिस्थितियों में नगण्य होना चाहिए)। जब गुर्दे का फ़िल्टरिंग तंत्र क्षतिग्रस्त हो जाता है या क्षतिग्रस्त हो रहा होता है, तो प्रोटीन, रक्त कोशिकाएं मूत्र से रिसने लगती हैं। गुर्दे की बीमारी का संकेत देने के अलावा, मूत्र में रक्त ट्यूमर, गुर्दे की पथरी या किसी भी तरह के संक्रमण का संकेत दे सकता है। साथ ही, बुखार या ठंड लगने के साथ पेशाब से निकलने वाला मवाद गंभीर हो सकता है और फिर से गंभीर मूत्र पथ के संक्रमण का संकेत हो सकता है। इस प्रकार मूत्र के रंग, स्थिरता या प्रकृति में परिवर्तन को गुर्दे के विशेषज्ञ को जल्द से जल्द सूचित किया जाना चाहिए।
  • सूखी और खुजली वाली त्वचा: सूखी और खुजली वाली त्वचा गुर्दे की बीमारी के उन्नत होने का संकेत हो सकती है। जैसे-जैसे गुर्दे की कार्य क्षमता कम होते जाती है, शरीर में विषाक्त पदार्थों का जमाव होता जाता है, जिससे त्वचा में खुजली, सूखापन और दुर्गंध होती है।
  • पीठ दर्द या पेट के निचले हिस्से में दर्द: पीठ, बाजू या पसलियों के नीचे दर्द गुर्दे की गड़बड़ी के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं जैसे कि गुर्दे की पथरी या पाइलोनफ्राइटिस। इसी तरह, पेट के निचले हिस्से में दर्द मूत्राशय के संक्रमण या एक मूत्रवाहिनी (गुर्दे और मूत्राशय को जोड़ने वाली ट्यूब) में पत्थर होने से जुड़ा हो सकता है। इस तरह के लक्षणों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और एक्स-रे केयूबी या अल्ट्रासाउंड एब्डोमेन जैसे नियमित इमेजिंग अध्ययन द्वारा आगे की जांच की जानी चाहिए।
  • उच्च रक्तचाप: किडनी की बीमारी का एक लक्षण उच्च रक्तचाप हो सकता है। उच्च रक्तचाप का निदान करने वाले किसी भी व्यक्ति को उच्च रक्तचाप के वृक्क एटियलजि का पता लगाने के लिए गुर्दे की कार्यप्रणाली और गुर्दे की इमेजिंग का विस्तृत विवरण होना चाहिए। जैसे-जैसे गुर्दे की कार्यक्षमता बिगड़ती जाती है, शरीर में सोडियम और पानी जमने लगते हैं जिससे उच्च रक्तचाप होता है। उच्च रक्तचाप के लक्षणों में सिरदर्द, पेट में दर्द, अँधेरा छाना और शायद गुर्दे की बीमारी के शुरुआती लक्षणों में शामिल हैं।

चेतावनी के संकेतों की पहचान की जागरूकता होने पर और समय पर इलाज करने पर गुर्दे की गड़बड़ी या गुर्दे की विफलता से बचा जा सकता है अन्यथा रोगी को डायलिसिस, या गुर्दा प्रत्यारोपण करवाना पड़ता है और ज्यादा लापरवाही करने पर उसकी मृत्यु भी हो सकती है।

गुर्दों को स्वस्थ रखने के टिप्स:

गुर्दे की बीमारी को रोकने ले लिए कई तरीके हैं। तो, जब तक आपकी किडनी रोगग्रस्त नहीं होती, तब तक आप प्रतीक्षा क्यों करें? अपने गुर्दे के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए निम्नलिखित कुछ उपाय हैं:

खूब पानी पिएं: यह आपके किडनी को स्वस्थ रखने का सबसे आम और सरल तरीका है। भरपूर पानी, विशेष रूप से गर्म पानी का सेवन करने से गुर्दे को शरीर से सोडियम, यूरिया और विषाक्त पदार्थों को साफ करने में मदद करता है।

कम सोडियम / नमक वाले आहार: अपने काने में सोडियम या नमक का सेवन नियंत्रण में रखें। इसका मतलब है कि आपको पैकेज्ड / रेस्टोरेंट के खाद्य पदार्थों से भी परहेज करना होगा। इसके अलावा, अपने खाने में अतिरिक्त नमक न डालें। कम नमक का आहार गुर्दे पर भार को कम करता है और उच्च रक्तचाप, उच्च रक्तचाप से संबंधित विकारों के विकास को रोकता है और गुर्दे की बीमारी की प्रगति को भी रोकता है।

शरीर का वजन उचित बनाए रखें: स्वस्थ भोजन करें और अपना वजन नियंत्रित रखें। अपने गुर्दे की धमनियों में कोलेस्ट्रॉल के जमाव को रोकने के लिए अपने शरीर के कोलेस्ट्रॉल के स्तर की नियमित जाँच करवाएँ। इसके अलावा, आहार से संतृप्त वसा / वसायुक्त तले हुए खाद्य पदार्थों को दूर रखें और रोजाना ढेर सारे फल और सब्जियां खाने पर जोर दें। किसी व्यक्ति का वजन बढ़ने से गुर्दे पर भार बढ़ता है। विशेष रूप से भारतीय परिदृश्य में 24 या उससे कम के बीएमआई के लिए लक्ष्य बनाने का प्रयास करें।

नियमित रूप से रक्त शर्करा के स्तर की जाँच करें और उन्हें इष्टतम स्तरों के तहत रखें: मधुमेह के रोगियों में गुर्दे की खराबी बहुत आम बात है और अगर जल्दी पता चल जाए तो इसे रोका जा सकता है। इसलिए, अपने रक्त शर्करा के स्तर पर नियमित जांच रखने, मीठे खाद्य उत्पादों से बचने और एक चिकित्सक से आपको मिलने की सलाह दी जाती है यदि रक्त शर्करा (उपवास या पोस्टप्रैंडियल) स्तर या एचबीए 1सी से ज्यादा हो। एचबीए 1सी का स्तर 6.0 से कम रखें।

नियमित रूप से रक्तचाप पर नजर रखें और इसे नियंत्रण में रखें: यदि आपको उच्च रक्तचाप है, तो अपने चिकित्सक द्वारा सलाह के अनुसार एंटीहाइपरटेन्सिव लें, और स्वस्थ जीवन शैली बनाए रखें तथा आहार में आवश्यक परिवर्तन करें। सामान्य रक्तचाप का स्तर <120/80 होता है। हाई ब्लड प्रेशर से गुर्दे  में गड़बड़ी के अलावा स्ट्रोक या दिल का दौरा भी पड़ सकता है।

किडनी फंक्शन टेस्ट करवाएं जिसमें आपके वार्षिक चेकअप के एक भाग के रूप में नियमित रूप से मूत्र विश्लेषण किया जाता है: जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है कि आपको मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा है या यदि आपकी उम्र 60 वर्ष से अधिक है, तो किडनी फंक्शन टेस्ट, रीनल इमेजिंग, और मूत्र विश्लेषण नियमित रूप से किया जाना चाहिए। मूत्र में भी मामूली प्रोटीन का पता लगने पर, अपने नेफ्रोलॉजिस्ट से मिलें। मधुमेह के रोगियों को इसपर विशेष रूप से नजर रखनी चाहिए।

धूम्रपान छोड़ें: धूम्रपान गुर्दे के रोग की प्रगति में बहुत ही जोखिम कारकों में से एक है। यहां तक कि 1 सिगरेट पीने से पहले से कमजोर किडनी को और नुकसान पहुंच सकता है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप, और सीएडी के लिए भी धूम्रपान एक जोखिम कारक है। इसलिए किसी को भी धूम्रपान तुरंत बंद कर देना चाहिए, जो न केवल गुर्दे के लिए बल्कि शरीर के समग्र स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है।

रोजाना नहीं तो हफ्ते के 7 दिनों में से कम से कम 5 दिन जॉगिंग, साइकलिंग, स्विमिंग, रैकेट गेम्स जैसे खेल खेलें जो रोजाना लगभग 45 मिनट तक का हो और इस तरह हल्की-फुल्की कसरत करके एक स्वस्थ स्वस्थ जीवनशैली बनाए रखें। अपनी गतिहीन जीवन शैली को बदलें, कार्यालय में घूमें या दोपहर के भोजन के बाद टहलें या सुबह-शाम व्यायाम करें।

एक दिन में कम से कम रात की 8 घंटे की आरामदायक नींद लेकर अपनी जीवनशैली को ठीक से संतुलित करें। स्वस्थ रहने के लिए रात को अच्छी नींद लेना आवश्यक है।

डॉ. सुदीप सिंह सचदेव, वरिष्ठ सलाहकार और क्लिनिकल लीड- नेफ्रोलॉजी, किडनी ट्रांसप्लांट – वयस्क, नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल गुरुग्राम

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