जयपुर। हार्ट अटैक के बाद का एक-एक क्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि गोल्डन ऑवर के अन्दर उपचार शुरू नहीं किया जाए तो अटैक के परिणाम गंभीर हो सकते हैं। ऐसा ही एक वाक़या 55 वर्षीय प्रेम देवी के साथ हुआ, जब हार्ट अटैक के बाद इलाज में देरी करने से उनके दिल में छेद हो गया और अटैक के दुष्प्रभाव से उनकी किडनी की कार्य प्रणाली भी प्रभावित हुई । अटैक आने के पूरे दो हफ्ते बाद जब उन्हें नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया तो डॉक्टरों ने मरीज की गंभीर स्थिति को देखते हुए बिना सर्जरी के ही गर्दन के रास्ते से वीएसडी डिवाइस लगाकर दिल का छेद बंद कर दिया और इस प्रकार से उनकी जान बचाई जा सकी।
अटैक के बाद दिल में छेद हो जाना खतरनाक –
जन्म से ही प्रत्येक व्यक्ति के दिल में प्राकृतिक रूप से छेद होता है और यह बिलकुल सामान्य बात है, मगर हार्ट अटैक के बाद समय पर इलाज ना मिलने से यदि दिल में छेद हो जाए तो यह स्थिति बेहद जटिल एवं घातक होती है। ऐसे मामलों में दिल के छेद को बंद करने के लिए एक विस्तृत प्लानिंग, अनुभव एवं दक्षता की आवश्यकता होती है।
ऐसे बढ़ी मरीज़ की समस्या-
प्रेम देवी को एक दिन अचानक से सीने में तेज दर्द हुआ जिसके बाद दिनों-दिन उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी, चक्कर आने लगे एवं यूरिन पास करने में भी दिक्कतें आने लगीं। नारायणा हॉस्पिटल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. राहुल शर्मा ने बताया कि बिगड़ती स्थिति को देखते हुए दो हफ्ते बाद जब उन्हें नारायणा हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया तो हमने सबसे पहले उनके गिरते स्वास्थ्य को स्थिर किया तत्पश्चात आवश्यक जाँचें की गई। जाँचों से यह पता चला कि दिल की एक मुख्य धमनी में ब्लॉकेज के कारण उन्हें हार्ट अटैक आया था। सही समय पर समुचित इलाज न होने से प्रभावित क्षेत्र में रक्त का संचार ठप्प पड़ गया था जिसके कारण उस क्षेत्र में एक छेद बन गया था।
छेद होने से दिल पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा था क्योंकि साफ़ व गंदा खून एकसाथ मिश्रित होने लग गया था। आमतौर पर ऐसे मामलों में सर्जरी आवश्यक है, मगर इस मामले में स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सर्जरी एक जोख़िम भरा फ़ैसला साबित हो सकता था। मरीज की हार्ट पंपिंग भी बहुत कम थी एवं किडनी भी प्रभावित थी। ऐसे में सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. हेमंत मदान की राय लेकर हमने उपचार का सर्वाधिक सुरक्षित तरीका अपनाया और एंडोवैस्कुलर विधि से इलाज करने का निर्णय लिया। डॉ. हेमंत मदान और डॉ. राहुल शर्मा की सक्षम टीम ने बग़ैर मरीज की सर्जरी किए ही सफलतापूर्वक इलाज किया।
गर्दन के रास्ते से तार डालकर लगाई गयी डिवाइस –
डॉ. राहुल शर्मा ने बताया कि, एंडोवैस्कुलर तकनीक के दौरान लगायी जाने वाली वीएसडी डिवाइस को, मरीज की जांघ के रास्ते दिल तक पहुंचाया जाता है। लेकिन यह प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होती है तथा सफलता की संभावना भी कम रहती है। इसलिए हमने मरीज की गर्दन के जरिये तार की मदद से डिवाइस डालकर दिल के छेद को बंद कर दिया। इस प्रक्रिया में समय की भी बचत हुई और केवल 30 मिनट की इस पूरी प्रक्रिया के बाद ही, मरीज पूर्णतया स्वस्थ हो गयीं । डॉ. राहुल ने बताया कि, यदि मरीज के इलाज में और विलंब किया जाता तो दो से तीन महीने के अंदर हार्ट फेलियर हो जाता जिससे मरीज की मृत्यु होने की पूरी आशंका थी। हार्ट अटैक के बाद इलाज में देरी करना घातक सिद्ध हो सकता है।
डॉ. हेमंत मदान, डायरेक्टर और सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट, नारायण सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, गुरुग्राम
डॉ. राहुल शर्मा, कार्डियोलॉजिस्ट, नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर