दिल के दौरे (हार्ट अटैक) का उपचार आधुनिक चिकित्सा की सबसे बड़ी सफलता की कहानियों में से एक हैं। अधिकांश हार्ट अटैक के मरीज जिनका समय रहते उपचार हो जाता है, वें जल्दी रिकवर भी हो जाते है और सामान्य दिनचर्या में भी लौट आते है।
किन्तु अगर हार्ट अटैक का मरीज गोल्डन पीरियड के अन्दर हॉस्पिटल नहीं पहुंच पाता है या उपचार शुरू करने में देरी हो जाती है तो हृदय की मांसपेशियाँ तेजी से एवं अपरिवर्तनीय रूप से क्षतिग्रस्त होने लगती है। क्षतिग्रस्त हृदय की मांसपेशियाँ संभावित रूप से घातक जटिलताओं को जन्म दे सकती हैं जिसमें वॉल्व लीकेज, हृदय गति से जुडे विकार एवं वेंट्रिकुलर डिसफंक्शन (हृदय की रक्त पम्पिंग क्षमता प्रभावित होना) शामिल हैं।
भाग्यवश अब नई ड्रग थेरेपी, सर्जिकल तकनीक और उपचार के कई विकल्प उपलब्ध हो गये है जो ऐसे मरीजों को बेहतर जीवन जीने में मदद कर सकते है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न –
क्या हार्ट अटैक उपरांत एंजियोप्लास्टी / बाईपास सर्जरी करवाने के बावजूद, मुझे समस्याँ हो सकती है?
यदि दिल का दौरा पड़ने के कुछ घंटो के भीतर (लगभग 6 घंटे) एक सफल एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी नहीं की जाती है, तो हृदय की माँसपेशियाँ स्थाई एवं अपरिवर्तनीय रूप से क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी हृदय में रक्त प्रवाह को फिर से सुचारू करने में मदद करती है एवं हृदय की मांसपेशियों को और नुकसान से बचाती है, लेकिन जो मांसपेशियाँ स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो चुकी है (उपचार में देरी के कारण) उन्हें वापस ठीक नहीं कर सकती। अतः हार्ट अटैक के बाद यदि मरीज के उपचार में देरी होती है तो एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी करवाने के बावजूद भी मरीज को भविष्य में हृदय से सबंधित जटिलताऐं हो सकती है।
किन मरीजों को अपने हृदय की जाँच करवानी चाहिए?
कई मेडिकल समस्याऐं है जो हृदय की माँसपेशियों को कमजोर कर देती है जिससे वॉल्व लीकेज, हृदय गति से जुड़े विकार या वेंट्रिकुलर डिसफंक्शन (हृदय की रक्त पम्पिंग क्षमता प्रभावित होना) जैसी गंभीर जटिलताऐं हो सकती है। ये जटिलताएँ ज्यादातर समय के साथ बढ़ती जाती हैं। अक्सर इसके लक्षण तब तक दिखाई नहीं देते है जब तक हृदय को काफी क्षति नहीं हो जाती है। अतः निम्नलिखित मरीजों को नियमित रूप से एक स्पेशियलिस्ट विशेषज्ञ द्वारा अपनी जाँच करानी चाहिए –
1. हार्ट अटैक के मरीज (चाहे उनकी एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी हो चुकी हो)।
2. हृदय रोग का इतिहास।
3. लम्बे समय से उच्च रक्तचाप या डायबिटिज।
4. एक या अधिक लक्षणों का अनुभव होना।
5. ईजेक्शन फ्रेक्शन 40% या उससे कम।
मरीजों में सांकेतिक लक्षण:
• सांस फूलना।
• पैरों में सूजन एवं वजन बढ़ना।
• भूख न लगना / जी मिचलाना।
• चक्कर आना या बेहोशी।
• थकान महसूस होना।
• तेज या अनियमित दिल की धड़कन।
• लगातार खाँसी होना (विशेषतः रात के समय)।
उपचार के कौनसे विकल्प उपलब्ध हैं?
कई अध्ययनों में यह साबित हो चुका हैं कि ऐसे मरीजों को उपयुक्त एवीडेन्स बेस्ड मेडिकल थेरेपी नहीं मिल पाती है। तेजी से ऐसे मरीजों को विशेष ओ.पी.डी. जिन्हें हार्ट फेलियर क्लिनिक या वेंट्रिकुलर डिसफंक्शन क्लिनिक कहा जाता है, वहाँ जाने की सलाह दी जा रही है। ऐसे विशेष क्लिनिक में उनकी स्थिति को प्रभावी रूप से ठीक किया जाता है या निम्नलिखित तकनीकों से नियंत्रित किया जाता हैः
उपयुक्त ड्रग थेरेपी. वॉल्व रिपेयर या रिप्लेसमेंट। सर्जिकल इंप्लांटेड डिवाइस (LVAD)। स्पेशलाईज्ड डिवाइस जैसे CRT (P), CRT (D), AICD या पेसमेकर का इंप्लांटेशन।
(डॉ.) हेमन्त मदान, सीनियर विजिटिंग कंसलटेंट – कार्डियोलॉजी, नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर