देश में हर साल, हजारों मरीजों की बाईपास सर्जरी की जाती है। बाईपास सर्जरी में दिल को रक्त पहुंचाने वाली ब्लॉक्ड धमिनियों को काटे या साफ किए बिना, ग्राफ्ट द्वारा एक नया रास्ता बनाया जाता है। इसके लिए एक स्वस्थ ब्लड वेसल (ग्राफ्ट) को हाथ, छाती या पैर से लिया जाता है और फिर प्रभावित धमनी से जोड़ दिया जाता है ताकि ब्लॉक्ड या रोग-ग्रस्त क्षेत्र को बाईपास कर सकें।
बाईपास सर्जरी में कार्डियक सर्जन की तकनीकी क्षमता एवं अनुभव विशेष महत्व रखती है। सर्जरी की सफलता इस्तेमाल किये गये ग्राफ्ट्स की गुणवत्ता एवं लाईफ पर भी निर्भर है- यानि ग्राफ्ट्स कितने टिकाऊ है और कितने लम्बे समय तक ठीक से काम कर पायेंगे। इसके अलावा यह बात भी महत्व रखती है कि ग्राफ्ट ‘लाइव’ है या नहीं यानि क्या वे शरीर की जरूरतों अनुसार अपने आप को ढाल सकते है या नहीं।
पारंपरिक बाईपास सर्जरी से बेहतर है लीमा-रीमा-वाई तकनीक से बाईपास सर्जरी:
आमतौर पर बाईपास सर्जरी में पैरों की ‘सेफेनस वेन’ या फिर बांह की ‘रेडियल आर्टरी’ का उपयोग कर ग्राफ्ट बनाया जाता है। हालांकि कई रिपोर्ट्स के अनुसार इन ग्राफ्ट्स में ब्लॉकेज होने की बहुत ज्यादा संभावना रहती है। यह ग्राफ्ट्स ‘नॉन-लाइव’ होते है यानि शरीर की जरूरतों अनुसार अपने आप को ढाल नहीं सकते। वहीं बाईपास सर्जरी की लीमा-रीमा-वाई तकनीक में लीमा-रीमा धमनी को उपयोग में लिया जाता है जो छाती के दाएं एवं बाएं ओर होती है। लीमा-रीमा धमनी की ग्राफ्ट्स को सबसे बेहतरीन ग्राफ्ट्स माना जाता है क्योंकि वे लम्बे समय तक चलते है, इनमें कॉलेस्ट्रॉल ब्लाकेज की संभावना न्यूनतम रहती है, यह शरीर की जरूरतों अनुसार अपने आप को ढाल सकते है और कुछ समस्या होने पर ये अपने आप को रिपेयर करने की क्षमता भी रखते है।
बाईपास सर्जरी कितने सालों तक चलती है:
कई अध्ययनों के अनुसार, यदि कोई मरीज लीमा-रीमा धमनियों के उपयोग से बाईपास सर्जरी कराता है तो ऑपरेशन के 10 साल बाद भी लगभग 95% लीमा ग्राफ्ट एवं 90% रीमा ग्राफ्ट के खुले रहने और ठीक से काम करने की संभावना रहती है। वही ऐसे मामले जिनमे पैर की सेफेनस वेन का इस्तेमाल किया जाता है तो बाईपास सर्जरी के 10 साल में, ग्राफ्ट्स के ब्लॉक होने की संभावना 40-50% तक रहती है जिसके कारण मरीज को री-इंटरवेंशन या फिर से ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ सकती है।
लीमा-रीमा-वाई तकनीक के उपयोग से बाईपास सर्जरी कराने के फायदें:
- लीमा-रीमा ग्राफ्ट्स लम्बे समय तक टिकाऊ रहते है, जिसके कारण मरीज की जीवन प्रत्यक्षा में वृद्धी होती है।
- इन ग्राफ्ट्स में ब्लॉकेज या रूकावट आने की संभावना न्यूनतम रहती है क्योंकि यह ग्राफ्ट्स कॉलेस्ट्रॉल एवं फैट बिल्ड-अप (एथेरोमा) के लिए अत्याधिक प्रतिरोधी होते है।
- इस तकनीक के इस्तेमाल से हाथों या पैरों में किसी प्रकार के निशान नहीं होते।
- इस तकनीक में सर्जरी के दौरान शरीर की मुख्य धमनी (एओर्टा) को इस्तेमाल में नही लिया जाता, जिससे ब्रेन स्ट्रोक जैसी जटिलताऐं नहीं होती।
लीमा-रीमा-वाई तकनीक के माध्यम से बाईपास सर्जरी करना तकनीकी रूप से काफी जटिल है और इसमें काफी समय भी लगता है। चुनिंदा कार्डियक सर्जन्स एवं कार्डियक सेन्टर्स ही इस तकनीक से बाईपास सर्जरी नियमित रूप से करते है। यह तकनीक डायबिटीज के मरीज एवं मल्टीपल ब्लॉकेेज से पीड़ित रोगियों के लिए भी पूर्णतः सुरक्षित एवं कारगर है। लीमा-रीमा-वाई तकनीक को बाईपास सर्जरी का गोल्ड स्टैंडर्ड माना जाता है।
डॉ. सी.पी. श्रीवास्तव | डायरेक्टर एवं एचओडी – कार्डियक सर्जरी – अडल्ट, कार्डियक सर्जरी – पीडिऐट्रिक्स, वेस्क्यलर सर्जरी | नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर