जयपुर। कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद भी फेफड़ों पर इसका असर लंबे समय तक दिख रहा है। नेगेटिव हुए मरीजों को सांस लेने में परेशानी, बहुत ज्यादा थकान, ऑक्सीजन सेचुरेशन में सुधार न होना, बार-बार सांस चढ़ना, सूखी खांसी होते रहना जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। यही नहीं, कई मरीजों को तो हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद भी ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। यह समस्याऐं पल्मोनरी फाइब्रोसिस एवं पल्मोनरी एम्बोलिज्म के कारण हो सकती है।
ज्यादातर मरीज 60 से अधिक उम्र वाले
नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर की पल्मोनोेलॉजिस्ट डॉ. शिवानी स्वामी ने बताया कि पोस्ट कोविड पल्मोनरी फाइब्रोसिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें कोविड संक्रमण के कारण फेफड़ों के नाजुक हिस्सों को नुकसान पहुंचता है और फेफड़ोें में झिल्ली बन जाती है। फेफड़े कम एक्टिव रह जाते है जिससे ऑक्सीजन और कार्बन-डाइऑक्साइड एक्सचेंज होना कम हो जाता है। अगर सही तरह से इलाज न हो तो जिंदगी भर फेफड़ों संबंधी परेशानी रह सकती है। जो मरीज मोटापा, फेफड़ों की बीमारी, डायबिटीज इत्यादि से पीड़ित होने के अलावा कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके है और लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रह चुके हैं, उन्हें पल्मोनरी फाइब्रोसिस का खतरा ज्यादा है। यह समस्या ज्यादातर 60 साल से अधिक आयु के मरीजों (जो कोविड पश्चात् नेगेटिव हो चुके है) में देखने को मिलती है लेकिन युवा मरीजों में भी हो सकती है।
कोरोना संक्रमण के कारण फेफड़ों की धमनियों में बन रहें थक्के
पल्मोनरी एम्बोलिज्म दूसरी समस्या है जिसका सामना कोविड-19 से ठीक हो चुके मरीजों को करना पड़ रहा है। फेफड़े की धमनियों में ब्लॉकेज हो जाते है जिससे फेफड़े तक खून के संचार में बाधा उत्पन्न हो जाती है। डॉ. शिवानी ने बताया कि महामारी के शुरू में लग रहा था कि कोरोना वायरस श्वसन तंत्र को संक्रमित कर रहा है। मगर अब मरीजों में खून के थक्कों को देखकर कहा जा सकता है कि वायरस खून की नसों पर भी हमला कर रहा है। यह बहुत गंभीर समस्या है जिसके परिणाम घातक हो सकते है।
ऐसे मरीजों को पोस्ट कोविड केयर की है जरूरत
कोरोना नेगेटिव आने के बाद भी यदि मरीज को थोड़ा सा टहलने या सीढ़िया चढ़ने पर सांस फूलना, खांसते या छींकते समय छाती में दर्द होना, लम्बी खाँसी, कई बार लेटे रहने पर भी सांस फूलने जैसी शिकायत होती है तो उन्हें तुरंत पोस्ट कोविड रिकवरी प्रोग्राम में आना चाहिए, जहाँ विशेषज्ञों द्वारा उनकी पूर्ण रूप से जाँच की जा सकें एवं आंतरिक अंगों में जो भी दुष्प्रभाव हुआ है उनका समय रहते पता लगाया जा सके। जिन मरीजों को पल्मोनरी फाईब्रोसिस की समस्या है, उन्में एक्सपर्ट्स सीटी स्केन जाँच द्वारा फाईब्रोसिस के परसेंटेज का मुआयना करते है। इसके बाद उसे प्लमोनरी रिहैबिलिटेशन के तहत लंग एक्सरसाइज, डाइट और सांस लेने के तरीके सिखाए जाते हैं और दवाओं से उसकी जीवन गुणवत्ता में सुधार किया जाता है। जिन मरीजों को पल्मोनरी एम्बोलिज्म की समस्या है उनमें सी.टी. पल्मोनरी एन्जियोग्राफी जाँच की जाती है। इसके उपचार के लिए डॉक्टर द्वारा खून पतला करने की दवाईयाँ दी जाती है। यह दवाईयाँ मेडिकल सुपरविजन में ही लेनी चाहिए।
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