कैंसर को बहुत से लोगों ने बहुत भयावह बना दिया गया है, खासकर फिल्मशो के दौरान सरकार द्वारा अनिवार्य रूप से दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का इसमें अहम रोल है। इसका मतलब ये नहीं है कि ये एक खतरनाक बीमारी नहीं है, लेकिन उस समय से, जब उन विज्ञापनो का निर्माण नहीं हुआ है, तब से आज तक उपचार के तकनीक में बहुत विकास हो चूका है। इस दृष्टि से वे विज्ञापन सही तस्वीर नहीं दिखाते। कैंसर के इलाज से संबंधित नए तकनीकों ने न केवल इलाज की सफलता दर को बढ़ाया है बल्कि चिकित्सा सत्रों के दौरान और बाद में व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है।
क्या बदल गया?
अगर मैं गलत नहीं हूँ तो आप अभी भी यही सोचते होंगे कि के होंगे कि कैंसर के उपचार के तीन हीं तरीकें है। जैसे –
ऐसा बहुत कुछ है जो तब से किया जा रहा है और आज एक हद तक अकल्पनीय है।
केमो आईडी – यह थेरेपी इस तथ्य पर आधारित है कि हर रोगी अलग है इसलिए उनका कैंसर भी। उनके ट्यूमर के टिश्यू का एक छोटा सा नमूना परीक्षण के लिए लिया जाता है और इनके विकास परीक्षण किया जाता है आगे इन्हीं को स्टेम सेल के लिए भी उपयोग करते हैं। इसके बाद केमो ड्रग्स बढियाँ रिजल्ट सुनिश्चित करने के लिए इसका टिश्यू पर परीक्षण करते हैं। फिर यही दवा रोगी को दिया जाता है। थेरेपी का सबसे अच्छा बात है –
रेडिएशन थेरेपी में परिवर्तन – पहले यह माना जाता था कि रेडिएशन थेरेपी कैंसर टिश्यू के साथ साथ नार्मल टिश्यू को भी प्रभावित करती है। तकनीकी प्रगति ने इस परिदृश्य को बदल दिया है जिसे ‘पिन पॉइंट प्रीसिश़न’ कहते हैं। यह तकनीक यह सुनिश्चित करती है कि क्षति केवल कैंसर वाले हिस्से तक ही सीमित रहे। मरीज को स्थिर सांचे में रखा जाता है, जबकि लीनियर ऐक्सेलरैटर जैसे उपकरण से रोगियों के कैंसर वाले टिश्यू पर एक्स-रे के माध्यम से पॉइंटेड रेडिएशन देते हैं।
अब न केवल उपचार के हिस्से को नया रूप दिया गया है बल्कि कैंसर प्रबंधन के सभी पहलुओं में नए प्रतिमान जोड़े गए हैं। पीईटी पर आधारित पहचान की प्रक्रियाएं जो एक हीं इमेज में शरीर के सारे कैंसर सेल्स को दिखा सकती हैं। इसमें एक कलम के आकर के उपकरण का उपयोग करते हैं जो सभी कैंसर सेल्स को पूरे शरीर में रोशन करती हैं जिससे कैंसर सेल्स और नॉर्मल टिश्यू के बीच अंतर पता चल जाता है। मेरा मानना है अब बदले परिदृश्य में विज्ञापनों के उन भयानक छवियों के जगह लिखित निर्देश दिखाने चाहिए और कीमोथेरेपी लेते हुए मुस्कुराते हुए चेहरे दिखाए जाने चाहिए।
डॉ. रणदीप सिंह, डायरेक्टर और सीनियर कंसलटेंट – मेडिकल ऑन्कोलॉजी, ऑन्कोलॉजी, नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, गुरुग्राम
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