लिविंग डोनर प्रत्यारोपण क्या है?
जब एक अंग या एक अंग का कोई हिस्सा को एक जीवित व्यक्ति से निकाल लिया जाता है और उस व्यक्ति में लगा दिया जाता है जाता है जिसकी वह अंग ख़राब हो गया हो, तो इस प्रक्रिया को लिविंग डोनर प्रत्यारोपण कहा जाता है।
इसी तरह लिवर ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लिवर या लिवर का एक हिस्से किसी स्वस्थ जीवित व्यक्ति से लेकर ख़राब लिवर वाले व्यक्ति में प्रत्यारोपित किया जाता है। दोनों लिवर धीरे-धीरे अपने पूर्ण आकर को प्राप्त कर लेते हैं।
अधिकांश प्रत्यारोपण की तरह, यह या तो:
- लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट
- युग्मित अंग विनिमय – जब आपके पास जीवित डोनर उपलब्ध हो लेकिन मिलान संबंधित समस्या आ रही हो, तो एक समान मिलान का डोनर ढूंढा जाता है जिससे विनिमय किया जाता है।
- मृतक डोनर प्रत्यारोपण – जब किसी कारण से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और अभिभावक उनके अंगों का दान करने का फैसला करते हैं। ब्रेन डेड मामलों में भी ऐसा होता है।
लिवर डोनर बनने की प्रक्रिया:
एक डोनर के रूप में आप को लिवर दान से जुड़े सारे खतरों के बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए। न केवल खतरे, बल्कि प्रत्यारोपण में शामिल सभी प्रमुख चरणों को जानना महत्वपूर्ण है। आइए प्रत्येक चरण को ध्यान से देखें:
- मूल्यांकन – उचित लिवर मिलान सुनिश्चित करने के लिए शामिल चिकित्सा टीम द्वारा अभ्यास। इसमें टेस्ट शामिल हैं जैसे:
- शारीरिक परीक्षा और मेडिकल इतिहास
- टिशू टाइपिंग
- रक्त परीक्षण
- मूत्र परीक्षण
- पीएपी स्मीयर (महिलाओं के लिए)
- मैमोग्राम
- कोलोनोस्कोपी
- इकोकार्डियोग्राम
- एक्स-रे
- ईसीजी
- सामाजिक और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन
- सर्जरी
सर्जरी के दौरान डोनर के दाएं पेट के ठीक नीचे पसली के पिंजर में एक चीरा लगाया जाता है। लिवर के एक हिस्से को रोगी के आवश्यकता के आधार पर अन्य किसी पार्ट को बिना कोई नुकसान पहुचाये काट कर निकाल लेते हैं। बाकी के लिवर वैसे हीं छोड़ कर चीरा को वापस सील देते हैं।
- रिकवरी
सर्जरी के बाद रिकवरी के लिए 7 दिनों तक आपको अस्पताल में रहना होता है। डोनर को चीरा के स्थान पर दर्द महसूस हो सकता है जिसे दर्द की दवा से नियंत्रित किया जा सकता है। लिवर की रिकवरी के संकेतों का लगातार अवलोकन किया जाता है।
अस्पताल से छूटी के बाद तकरीबन 8 सप्ताह तक 5 किलो से अधिक वजन नहीं उठाया जाना चाहिए। डोनर को नियमित रूप से सप्ताह में एक बार अस्पताल जाना पड़ सकता है और निर्देशित दवाएं समय से लेना होता है।उन्हें इस संबंध में बताए व्यायाम भी करते रहना चाहिए। लिवर ट्रांसप्लांट के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि डोनर का लिवर 6-8 सप्ताह में लगभग अपने पूर्ण आकार में वापस आ जाता है। डोनर 6-8 सप्ताह के भीतर अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में वापस लौट आते हैं।
लिवर डोनेशन से जुड़े जोखिम:
- एनेस्थीसिया से संभावित एलर्जी प्रतिक्रिया
- दर्द और तकलीफ
- जी मिचलाना
- घाव में संक्रमण
- रक्तस्राव जिसमें ट्रैन्स्फ्यूश़न की आवश्यकता पड़ सकती है
- खून के थक्के
- निमोनिया
- पित्त रिसाव, पित्त नली की समस्याएं
- हरनिया
- निशान ऊतक गठन
- मृत्यु (अत्यंत दुर्लभ)
लिवर डोनर से संबंधित सामान्य भ्रांति:
आमतौर पर लोग सोचते हैं कि यह किडनी ट्रांसप्लांट की तरह है और उन्हें अपने जीवन के बाकी समय लिवर के एक हिस्से के साथ हीं रहना पड़ेगा, जो सच नहीं है। लिवर शरीर का एकमात्र ऐसा अंग है जो समय के साथ अपने सामान्य आकार में आ जाता है। डोनेशन के बाद यही प्रक्रिया घटित होता है। 6-8 सप्ताह के भीतर आपका लिवर बिलकुल नए रूप में वापस आ जाता है। जल्द हीं आप अपने जीवनशैली को वापस प्राप्त कर लेते हैं।
लिवर डोनेशन के बाद डोनर के जीवन की गुणवत्ता: बिलकुल ठीक। ठीक वैसा जैसा प्री-ट्रांसप्लांट के पहले था।
लिवर डोनर की जीवन प्रत्याशा:
लिवर प्रत्यारोपण के बिना किसी एक व्यक्ति की जितनी सामान्य आयु होती है।
अब आप जानते हैं कि लिवर डोनेशन का इस बात पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है कि आप कितने समय तक स्वस्थ और जीवित रहेंगे। इसका एकमात्र प्रभाव आपके मानस और समाज पर पड़ता है। आप शेष जीवन के लिए गर्व और संतुष्टि की भावना के साथ रहते हैं। और लोग आपको श्रद्धा से देखते हैं। वे एक दिन आपके जैसा त्याग करने के बारे में सोचते हैं।
डॉ. संजय गोजा, प्रोग्राम डाइरेक्टर और क्लीनिकल लीड – लिवर ट्रांसप्लांट, एच.पी.बी. सर्जरी और रोबोटिक लिवर सर्जरी, मज़ूमदार शॉ मेडिकल सेंटर, बोम्मासैंड्रा और नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, गुरुग्राम